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&
Lions Club Parasia Chandametta
District 323 C


The Lions Club of Parasia Chandametta, which was chartered in 1987, is affiliated to Lions Clubs International, a world-wide community service organisation dedicated to the idea that the men and women who live in a community are in the best position to know who needs help and why. 

OUR MISSION : “Our mission is to bring Eye care of International standard within the reach of every individual. We are committed to the achievement and maintenance of excellence in education, research and eye care for the benefit of Humanity.”
If you want to participate in any of our activity
You may Drop a Email us on lionsparasia@gmail.com
     



मेरे अंगोंसे अंग काटकर 
कॊई जीवन पार लगा देना
मरने के बाद मेरे हमदम 
जग का कल्याण करा देना

कॊई नेत्रहीन पा नेत्र मेरे
जब इस दुनिया को देखेगा
मेरे जाने के बाद मेरा 
जीवन सार्थक हो जायेगा

पुलकित होकर उसका मन 
जब भावनाऒं को समझेगा
मेरी आंखें जग में होगीं
एक पुनर्जन्म हो जायेगा

यह परोपकार नही मेरा
समझो इसको मेरा सपना
मैं धन्य नही मैं पुण्य नही
सब जग का है यह जग अपना

इतना ही जतन बस कर लेना
ये नेत्र दान तुम कर देना 
एक छोटी सी है विनती मेरी
आंखों कॊ अमृत दे देना.....


लायंस क्लब परसिया चांदामेटा नेत्रदान को एक अभियान के रूप में चलता है | हमारी टीम के सभी सदस्यों एवं उनके परिजनों ने नेत्रदान की घोषणा कर लोगो को प्रेरित कर रहे है | अंधत्व निवारण के लिए कार्य कर रही हमारी संस्था ने अभी तक ४०० से ज्यादा नेत्रदान करवा चुकी है \ लायंस परसिया चांदामेटा की जागरूकता के साथ आप भी किन्ही दो लोगो को रौशनी प्रदान करने की शपथ ले | 


To fight against blindness, serve the under previlleged, bring improvements in Eye Care System and the made provide better Eye treatment FREE OF COST to the poor and the needy

देहदान

दान से पुण्य कोई कार्य नहीं होता। दान मनुष्य की उदारता का परिचय देता है, । राजा हरिश्चन्द्र को उनकी दानवीरता के लिए ही जाना जाता है। राजा हरिश्चन्द्र  ने मानवता को जो रास्ता दिखाया आज उस पर चलकर तमाम लोग समाज एवं मानव की सेवा में जुटे हुए हैं। देहदान के पवित्र संकल्प द्वारा दूसरों को जीवन देने का जज्बा विरले लोगों में ही देखने को मिलता है। चूँकि मनुष्य के देहान्त बाद की परिस्थितियां मानवीय हाथ में नहीं होती, अतः विभिन्न धर्मों में इसे अलग-अलग रूप में व्याख्यायित किया गया है। धर्मों की परिभाषा से परे एक मानव धर्म भी है जो सिखाता है कि जिन्दा होकर किसी व्यक्ति के काम आये तो उत्तम है और यदि मृत्यु के बाद भी आप किसी के काम आये तो अतिउत्तम है।

मध्यप्रदेश के छिंदवाडा जिले में एक ऐसा परिवार है जिसने लोगों को नेत्रदान अथवा रक्तदान नहीं बल्कि देहदान के लिए जागृत करने का अभियान छेड़ा है।
छिंदवाडा के बडकुही ग्राम की डेहरिया दम्पति मरने के बाद भी अपनी सेवाएं समाज के लिए देना चाहता है। इसलिए डेहरिया दम्पति ने देहदान का संकल्प लिया है। वे चाहते हैं कि समाज के अन्य लोग भी देहदान करें ताकि उनकी देह का इस्तेमाल चिकित्सा विज्ञान में नई खोजों के लिए किया जा सके।उन्होंने अपनी इस हार्दिक इच्छा को लायंस क्लब परासिया  के समक्ष रखी ,फिर लायंस क्लब के पदाधिकारियों के साथ इसकी कानूनी प्रक्रिया पूरी की और अनुविभागीय अधिकारी SDM श्री दारासिंह ठाकरे के समक्ष देहदान करने करने की सपथ ली और इसकी घोषणा की !

जैसा की ज्ञात हो की लायंस क्लब परासिया चांदामेटा 323C विगत २२ वर्षो से अन्धतव निवारारण के लिए युद्ध स्तर पर काम कर रही है ! और नेत्रदान करवाने के लिए लायंस क्लब परासिया  का नाम पुरे भारत वर्ष में सम्मान के साथ लिया जाता है .लायंस क्लब परासिया जिले में हमेशा समाज के हित में कुछ नया एवं एतिहासिक कार्य कर,जिले एवं  प्रदेश का नाम रोशन करता आ रहा है , चाहे १ भव्य नेत्र चिकित्सालय की शुरुआत कर उसे सफलता पूर्वक चलाना हो , या नेत्रदान के पश्चात् उन नेत्रों का स्थानीय जरूरतमंदो को ही उसका प्रत्यारोपण कर , नेत्र प्रत्यारोपण जैसे महान कार्य की एतिहासिक शुरुआत करना हो , समाज सेवा के हर क्षेत्र में लायंस क्लब अग्रणी रही है ! इसी श्रंखला में लायंस क्लब के १ सदस्य लायन हेमंत जैन ने भी इसके पूर्व लायंस क्लब के शपथ ग्रहण समारोह में अपने देहदान की घोषणा की थी , इनसे प्रेरित डेहरिया दम्पति ने भी अपनी इच्छा जाहिर की !वस्तुतः आज सबसे ज्यादा जरूरत युवा पीढ़ी को देहदान व नेत्रदान जैसे संकल्पबद्ध अभियान से जोड़ने की है। हिन्दुस्तान में मौजूद 1 करोड 20 लाख नेत्रहीनों को नेत्र ज्योति प्रदान करने एवं अन्धता निवारण के लिए नेत्रदान करना बहुत जरूरी है। इसी परम्परा में भारतवर्ष में तमाम लोग नेत्रदान-देहदान की ओर प्रवृत्त हो रहे हैं। इन्सान भी मृत्यु के बाद 2 नेत्रहीनों को नेत्रज्योति, 14 लोगो को अस्थियाँ व हजारों मेडिकल छात्रों को चिकित्सा शिक्षा दे सकता है। दान की हुई आँखें तीन पीढ़ी तक काम आती हैं। 

किसी कवि ने कहा है-

हाथी के दाँत से खिलौने बने भाँति-भाँति
बकरी की खाल भी पानी भर लाई
मगर इंसान की खाल किसी काम न आई !!

वैसे नेत्रदान, किडनीदान या अन्य अंगों के दान को लेकर हमारे समाज में जितनी अज्ञानता मौजूद है, वह समझ से परे है। लोग इस पहलू से परिचित नहीं  है कि किस तरह अंगदान या देहदान के बाद उनका प्रयोग होता है। यह भी बहुत कम लोग जानते हैं कि भारत में हर साल लाख लोग दिल, आंत और लीवर की ऐसी तकलीफों से मरते हैं, जिन्हें अंग प्रत्यारोपण से मिटाया जा सकता है।लेकिन इक्कीसवीं सदी में भी अज्ञान और अंधश्रद्धा का ऐसा आलम है कि मरने के बाद भी हम अपने अंगों और शरीर का मोह छोड़ने के लिए तैयार नहीं।

लोगों की धार्मिक मान्यताएं और परम्पराएं मृत्यु के बाद 'जीवन' की बात करती हैं, जिसका कोई सांइटिफिक सबूत मौजूद नहीं है। इतना तो वहां भी तय है कि यह शरीर यहीं नष्ट हो जाता है, चाहे अंतिम संस्कार का तरीका कुछ भी हो। ऐसे में मृत्यु के बाद जीवन का इससे शानदार तरीका क्या हो सकता है कि हम अपने शरीर को मिट्टी में मिलने या राख होने से बचाएं और दूसरों की जिंदगी को भरपूर बना दें?

इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि मरने के बाद भी कई लोगों को जिंदगी की सौगात दी जा सकती है और अंगदान से मृत शरीर में कोई विरूपता नहीं आती। अगर इससे भी आगे बढ़कर देहदान किया जाए, तो मेडिकल साइंस के विकास में मदद मिलती है, जो लाखों-करोड़ों लोगों को सुख दे सकता है

                                                                                                                                                   आपका
                                                                                                                                         लियो पीयूष बत्रा


हमारे शास्त्रों ने विद्यादान को महादान की श्रेणी में रखा है I सही भी  है, किन्तु यदि आधुनिक युग के परिपेक्ष्य में दृष्टिपात करें तो कदाचित इस बात पर बहुमत सहमत होगा  कि विद्यादान के साथ साथ यदि इसमें नेत्रदान को भी जोड़ दिया जाये तो कोई अतिशयोक्ति न होगी I  मेरा तात्पर्य यहाँ शास्त्रों को गलत सिद्ध करने से नहीं है I  उस समय शायद विज्ञानं का स्तर इतना ऊँचा था कि आम व्यक्ति को नेत्र दान की आवशयकता  ही नहीं थी I  इसका पुष्ट प्रमाण है कि भगवन कृष्ण ने पहले संजय को दिव्य दृष्टि दी और फिर अर्जुन को I  वे तो भगवन के अपने थे इसलिए यदि कहीं आई बैंक  होगा भी तो उन्हें प्राथमिकता के आधार पर नेत्र मिल गए होंगे, किन्तु  मेरे देश के उन लाखों करोड़ों लोगो का क्या जो फूलों कि सुगंध तो ले सकते है उनकी कोमल छुवन को अनुभव कर सकते हैं परन्तु उसकी सुन्दरता को निहार नहीं सकते ?  उनका क्या कि जब वसंत अपने यौवन पर होता है, झर झर झरने बहते हैं ,गगनचुम्बी पर्वतशिखर हिमाच्छादित होते है ,समुद्र की लहरें अपने तटों के साथ  अठखेलियाँ करती हैं  ,प्रकृति सोलह श्रृंगार करती है  ये सब बातें वे सुन तो सकते है परन्तु देख नहीं सकते   क्या एक उत्तरदायी नागरिक होने के नाते इस और  हमारा कोई कर्तव्य   नहीं ? अवश्य है  और इसका सबसे अच्छा उपाय है नेत्रदान I



आज हमारे समाज इस विषय में बहुत सी भ्रांतियां हैं कि नेत्रदान करना चाहिए अथवा नहीं I  आज जब विज्ञानं ने लगभग सारे कृत्रिम अंगो  का निर्माण कर लिया है तब केवल कुछ अंग ऐसे हैं जिनका निर्माण विज्ञानं नहीं कर पाया और उनमे से एक है हमारे नेत्र I  इसका केवल एक ही उपाय है ---नेत्रदान I  मैं समझता हूँ कि यदि हम नेत्रदान करते हैं तो न केवल एक व्यक्ति को संसार देखने लायक बनाते हैं ,एक परिवार को रोटी देते हैं,समाज से एक भिखारी कम करते हैं और देश को दृष्टि देते हैं   इस अमूल्य निधि को मृत शरीर के साथ जलाने का कोई लाभ नहीं आज सभ्य देश और समाज इस बात को पूर्ण रूप से आत्मसात कर चुके हैं कि नेत्रदान न केवल हमारा नैतिक उत्तरदायित्व होना चाहिए अपितु नियमानुसार भी अनिवार्य होना चाहिएI या यूं कहें कि

                                               " जो सबकी हिफाजत करती हैं ,अब उनकी हिफाजत लाजिम है 
                                                       संभल के रहना राहों में आँखों के लुटेरे बैठे हैं "

जो लोग कहते हैं कि नेत्रदान से अंग भंग होता है और मृतक को स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती , मैं कहता हूँ कि ऐसे लोग आँख से नहीं जेहन से अंधे हैं  I यह समस्या केवल इसी तरीके से सुलझाई जा सकती है क्योंकि :

                                                     " न किसी हमसफ़र से न हमनशीं से निकलेगा 
                                                            हमारे पैर का कांटा हमीं  से निकलेगा "

अत: आवश्यक है कि युवा पीढ़ी यह व्रत ले कि हम नेत्रदान करेंगे और अपने बुजुर्गों को इसके लिए तैयार करे कि यदि दोनों मिलकर यह काम करें तो कदाचित हमारे देश में कोई भी ओव्यक्ति नेत्रहीन न हो I  मैं तो कहता हूँ कि जिस प्रकार सुभाष चन्द्र बोस ने आह्वान किया था  "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा " मैं आप सबका आह्वान करता हूँ कि तुम मुझे नेत्र दो मैं तुम्हे खुशहाल राष्ट्र दूंगा I   और यदि हम सब इस आन्दोलन में भाग लें तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि चारों और से वैसी ही आवाजें सुनाई देंगी कि मैं तुम्हें नेत्र दूंगा ----मैं तुम्हे नेत्र दूंगा --मैं तुम्हे नेत्र दूंगा 

अंत में केवल इतना ही कहना चाहूँगा कि यदि बिथोविन को नेत्र मिले होते तो संगीत और मधुर होता ,यदि जॉन मिल्टन को नेत्रदान मिला होता तो कविता और रसमयी होती,सूरदास को नेत्रदान मिला होता तो कृष्ण की बाल लीलाएं और सुंदर होतीं और यदि धृत राष्ट्र को नेत्र दान मिला होता तो कदाचित उसकी आँखों  में लज्जा आ जाती और महाभारत टल जाता और इतना बड़ा नरसंहार न होता I  अत: आओ हम प्रयास करें कि प्रत्येक दृष्टिहीन व्यक्ति  को दृष्टि मिले  यदि हम सब नेत्रदान करें तो शायद जीवन भर हम उस व्यक्ति  के माध्यम से स्वयं की आखों में कभी नहीं गिरेंगे और हम अपननी आखों से हमेशा विश्व को देखते रहेंगे



आपका
लियो पीयूष बत्रा